Title : The Third Constant |
Author : Sanjay Dosaj |
|
वेदों कि सार्थकता - वैज्ञानिक दृष्टिकोण
फ्रेडरिक मैक्स म्युलर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है, वे वो हस्ती हैं जिन्होंने हमारे धर्म और संस्कृति का बहुत गहन अध्ययन किया, उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन कर अपनी लिखी किताबों, लेखों आदि में उनका गुणगान किया तथा विश्व पटल पर वेदों और हिन्दू धर्म का सम्मान बढ़ाया । उन्होंने अपनी पुस्तक 'इंडिया - व्हाट इट कैन टीच अस' में लिखा है कि मानसिक विकास के क्षेत्र में भारत की स्तिथि किसी अन्य देश से कमतर नहीं है । किसी भी क्षेत्र भाषा, धर्म, पौराणिक कथाओं, तर्क़ शास्त्र विद्या, तत्वज्ञान, सिद्धांत, रीती - रिवाज, पौराणिक कला, पौराणिक विज्ञानं आदि में मानसिक विकास के आंकलन के लिए हमें भारत की ओर रुख करना चाहिए ।
एक विदेशी होते हुए भी हमारी भाषा संस्कृत, हमारे रीती - रिवाजों, धर्म और वेदों का इतना गहन अध्ययन करना, उनका सही प्रकार आंकलन करना और उसको उसी प्रकार विश्वपटल पर रखना और भारतीय संस्कृति और धर्म को विश्व में न सिर्फ उचित स्थान दिलाना बल्कि उचित सम्मान दिलाना बेहद प्रशंसनीय कार्य है । यह सब भी ऐसे परिवेश में जब हमारी तत्कालीन पीढ़ी कि सोच में केवल पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का भूत सवार था, उन्होंने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि जब सिविल सर्विसेज के परीक्षार्थियों को दिए व्याख्यान में उन्होंने परीक्षार्थियों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया तो जवाब मिला कि संस्कृत का जितना भी साहित्य है उसका अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध है इसलिए संस्कृत के अध्ययन में समय और ऊर्जा व्यर्थ करना समझदारी नहीं है ।
हमारी तत्कालीन पीढ़ी कि सोच ही आज़ादी के बाद बनाई गयी योजनाओं में भी परिलक्षित होती है जिनमें विद्यातंत्र में संस्कृत को कतई महत्व नहीं दिया गया, परिणामस्वरूप हमारी आज की पीढ़ी संस्कृत से लगभग अछूती ही है, कुछ आधे-अधूरे प्रयासों के फलस्वरूप कुछ राज्यों में माध्यमिक स्तर तक बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है किन्तु उसका स्तर इतना कम है की इस शिक्षा के बल पर वेदों को समझ पाना असम्भव है । दुःख का विषय है कि हमारे देश में वेदों का वैज्ञानिक आंकलन करने का कभी भी कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया गया, हमारे शिक्षा तंत्र की विडम्बना है की जो व्यक्ति विज्ञानं पढता है उसका संस्कृत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता और जो व्यक्ति संस्कृत पढता है उसे विज्ञानं का क, ख, ग भी नहीं आता है । ऐसे में मैक्स म्युलर का कथन की 'हिन्दू अपने वेदों का बहुत सम्मान करते हैं तथा उनकी पूजा करते हैं किन्तु उनसे कुछ भी सीखने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं करते और न ही यह मानते हैं की इनसे कुछ सीखा जा सकता है' पूर्णतया
वेदों कि सार्थकता - वैज्ञानिक दृष्टिकोण
फ्रेडरिक मैक्स म्युलर का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है, वे वो हस्ती हैं जिन्होंने हमारे धर्म और संस्कृति का बहुत गहन अध्ययन किया, उन्होंने वेदों का गहन अध्ययन कर अपनी लिखी किताबों, लेखों आदि में उनका गुणगान किया तथा विश्व पटल पर वेदों और हिन्दू धर्म का सम्मान बढ़ाया । उन्होंने अपनी पुस्तक 'इंडिया - व्हाट इट कैन टीच अस' में लिखा है कि मानसिक विकास के क्षेत्र में भारत की स्तिथि किसी अन्य देश से कमतर नहीं है । किसी भी क्षेत्र भाषा, धर्म, पौराणिक कथाओं, तर्क़ शास्त्र विद्या, तत्वज्ञान, सिद्धांत, रीती - रिवाज, पौराणिक कला, पौराणिक विज्ञानं आदि में मानसिक विकास के आंकलन के लिए हमें भारत की ओर रुख करना चाहिए ।
एक विदेशी होते हुए भी हमारी भाषा संस्कृत, हमारे रीती - रिवाजों, धर्म और वेदों का इतना गहन अध्ययन करना, उनका सही प्रकार आंकलन करना और उसको उसी प्रकार विश्वपटल पर रखना और भारतीय संस्कृति और धर्म को विश्व में न सिर्फ उचित स्थान दिलाना बल्कि उचित सम्मान दिलाना बेहद प्रशंसनीय कार्य है । यह सब भी ऐसे परिवेश में जब हमारी तत्कालीन पीढ़ी कि सोच में केवल पश्चिमी सभ्यता और संस्कृति का भूत सवार था, उन्होंने अपनी किताब में यह भी लिखा है कि जब सिविल सर्विसेज के परीक्षार्थियों को दिए व्याख्यान में उन्होंने परीक्षार्थियों को संस्कृत पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करने का प्रयास किया तो जवाब मिला कि संस्कृत का जितना भी साहित्य है उसका अंग्रेजी अनुवाद उपलब्ध है इसलिए संस्कृत के अध्ययन में समय और ऊर्जा व्यर्थ करना समझदारी नहीं है ।
हमारी तत्कालीन पीढ़ी कि सोच ही आज़ादी के बाद बनाई गयी योजनाओं में भी परिलक्षित होती है जिनमें विद्यातंत्र में संस्कृत को कतई महत्व नहीं दिया गया, परिणामस्वरूप हमारी आज की पीढ़ी संस्कृत से लगभग अछूती ही है, कुछ आधे-अधूरे प्रयासों के फलस्वरूप कुछ राज्यों में माध्यमिक स्तर तक बच्चों को संस्कृत की शिक्षा दी जाती है किन्तु उसका स्तर इतना कम है की इस शिक्षा के बल पर वेदों को समझ पाना असम्भव है । दुःख का विषय है कि हमारे देश में वेदों का वैज्ञानिक आंकलन करने का कभी भी कोई गम्भीर प्रयास नहीं किया गया, हमारे शिक्षा तंत्र की विडम्बना है की जो व्यक्ति विज्ञानं पढता है उसका संस्कृत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं होता और जो व्यक्ति संस्कृत पढता है उसे विज्ञानं का क, ख, ग भी नहीं आता है । ऐसे में मैक्स म्युलर का कथन की 'हिन्दू अपने वेदों का बहुत सम्मान करते हैं तथा उनकी पूजा करते हैं किन्तु उनसे कुछ भी सीखने का कोई गम्भीर प्रयास नहीं करते और न ही यह मानते हैं की इनसे कुछ सीखा जा सकता है' पूर्णतया
About Author:Research scholar on Vedas
|